रबिन्द्र नाथ टैगोर का जीवन परिचय | Biography Rabindranath Tagore
रवींद्रनाथ टैगोर की जीवनी हिंदी में: 2022 में, 7 मई को रवींद्रनाथ टैगोर जयंती के रूप में नामित किया जाएगा। 7 मई, 1861 को रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म कलकत्ता, पश्चिम बंगाल में हुआ था। देबेंद्रनाथ टैगोर और शारदा देवी रवींद्रनाथ टैगोर के माता-पिता थे। अपने पांच भाई-बहनों में रवींद्रनाथ टैगोर सबसे छोटे थे। रवींद्रनाथ टैगोर के योगदान से साहित्य, संगीत और राष्ट्र की स्वतंत्रता सभी लाभान्वित हुए। रवींद्रनाथ टैगोर जयंती, जो 7 मई को प्रतिवर्ष मनाई जाती है, टैगोर को उनके अतुलनीय योगदान के लिए सम्मानित करती है। रवींद्रनाथ टैगोर जयंती पर, राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री और राज्य के मुख्यमंत्रियों सहित सभी उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। रवींद्रनाथ टैगोर के बारे में विवरण, उनकी जीवनी, शिक्षा, सम्मान और उपलब्धियों सहित, नीचे दिया गया है।
रबींद्रनाथ टैगोर जयंती कब क्यों मनाई जाती है?
ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती 7 मई को मनाई जाती है, लेकिन बंगाली कैलेंडर के अनुसार उनका जन्म बैसाख महीने के 25वें दिन हुआ था, इसलिए रवींद्रनाथ टैगोर जयंती मनाई जाती है। नतीजतन, बंगाली कैलेंडर के अनुसार, उनका जन्मदिन 8 मई या 9 मई को पश्चिम बंगाल में मनाया जाता है। पोचिश बोइशाख रवींद्रनाथ टैगोर के जन्म की सालगिरह का दूसरा नाम है। वे सबसे छोटे भाई थे और कोलकाता (कलकत्ता) के एक संपन्न ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे।
शुरुआती जीवन (Early Life)
टैगोर जी बहुत ही कम उम्र में बंगाल पुनर्जागरण का हिस्सा बने, जहाँ उनके परिवार की काफी सक्रिय भागीदारी रहती थी. टैगोर जी का पूरा परिवार एक उत्साही कला प्रेमी था. जो कि पूरे भारत में बंगाली संस्कृति और साहित्य पर उनके प्रभावशाली प्रभाव के लिए जाने जाते थे. इस तरह के परिवार में पैदा होने के बाद उन्होंने क्षेत्रीय लोक एवं पश्चिमी दोनों ही भाषाओँ में थिएटर, संगीत, और साहित्य की शुरुआत कर दुनिया को अपने आप से रूबरू कराना शुरू किया.
जब वे केवल 11 वर्ष के थे तो वे अपने पिता के साथ पूरे भारत का दौरा किया करते थे. इस यात्रा के दौरान उन्होंने कई विषयों में ज्ञान अर्जित किया. उन्होंने एक प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीत कवि कालिदास जैसे प्रसिद्ध लेखकों के कार्यों को पढ़ा और जाना. जब वे इस यात्रा से वापस लौटे तब उन्होंने सन 1877 में मैथिलि शैली में एक बहुत लंबी कविता का निर्माण किया. उन्हें कवि कालिदास जी के अलावा अपने भाई बहनों से भी प्रेरणा मिली, उनके बड़े भाई द्विजेन्द्र नाथ एक कवि एवं दार्शनिक थे. इनके साथ ही उनके दुसरे भाई सत्येन्द्र नाथ जी भी एक सम्मानजनक स्थिति में थे. उनकी एक बहन स्वर्नाकुमारी एक प्रसिद्ध उपन्यासकार थीं. उन्होंने अपने बड़े भाई एवं बहनों से जिम्नास्टिक, मार्शल आर्ट्स, कला, शरीर रचना, साहित्य, इतिहास और गणित के क्षेत्र में प्रशिक्षण प्राप्त किया था. यात्रा के दौरान जब वे अमृतसर में थे. तब उन्होंने सिख धर्म के बारे में जानने के लिए मार्ग प्रशस्त किया, उनके इस अनुभव ने उन्हें बाद में 6 कविताओं और धर्म पर कई लेखों को लिखने में मदद की.
रबिन्द्र नाथ टैगोर की शिक्षा (Education of Rabindranath Tagore)
हालाँकि टैगोर जी की अधिकांश शुरूआती शिक्षा घर पर ही पूरी हुई थी. किन्तु इनकी पारंपरिक शिक्षा एक इंग्लैंड के सार्वजनिक स्कूल ब्राइटन, ईस्ट ससेक्स से पूरी हुई. दरअसल उनके पिता चाहते थे कि रबिन्द्र नाथ जी बैरिस्टर बने, इसलिए उन्होंने उन्हें सन 1878 में इंग्लैंड भेजा. इंग्लैंड में उनके प्रवास के दौरान उन्हें समर्थन देने के लिए उनके साथ उनके परिवार के अन्य सदस्य जैसे उनके भतीजे, भतीजी और भाभी भी शामिल हो गये. इसके बाद में उन्होंने लंदन यूनिवर्सिटी के कॉलेज में दाखिला लिया, जहाँ वे कानून की पढ़ाई के लिये गए थे. किन्तु वे बिना डिग्री लिए इसे बीच में ही छोड़ दिए. और शेक्सपियर के कई कामों को अपने ही तरीके से सीखने की कोशिश करने लगे. वहां से वे अंग्रेजी, इरिश और स्कॉटिश साहित्य और संगीत के सार को सीखने के बाद भारत वापस लौट आये. .
शुरूआती करियर (Earlier Career)
इनके करियर की बात की जाये तो इन्होने बहुत कम उम्र में ही लिखना शुरू कर दिया था. सन 1882 में उन्होंने अपनी सबसे चर्चित कविताओं में से एक ‘निर्जहर स्वप्नाभांगा’ लिखी थी. उनकी एक भाभी कादंबरी उनके करीबी दोस्त और विश्वासी थी. जिन्होंने सन 1884 में आत्महत्या कर ली थी. इस घटना से उन्हें गहरा आघात पहुंचा, उन्होंने स्कूल में कक्षाएं छोड़ी और अपना अधिकांश समय गंगा में तैराकी करने और पहाड़ों के माध्यम से ट्रैकिंग करने में बिताया. सन 1890 में, शेलैदाहा में अपनी पैतृक संपत्ति की यात्रा के दौरान उनकी कविताओं का संग्रह ‘मणसी’ जारी किया गया था. सन 1891 और 1895 के बीच की अवधि फलदायी शाबित हुई, जिसके दौरान उन्होंने लघु कथाओं ‘गल्पगुच्छा’ के तीन खंडो का संग्रह किया. .
शान्तिनिकेतन की स्थापना (Establishment of Shantiniketan)
अपने पिता की संपत्ति पर एक प्रायोगिक स्कूल खोलने के इरादे से वहाँ एक आश्रम की स्थापना की। पास में संगमरमर के पत्थर के फर्श वाला एक प्रार्थना कक्ष था। इसे “दा मंदिर” नाम दिया गया था। वहां पेड़ के नीचे कक्षाएं लगती थीं और वहां पारंपरिक गुरु-शिष्य पद्धति का उपयोग करके शिक्षा दी जाती थी। वहाँ, टैगोर जी ने आशा व्यक्त की कि शिक्षण की पारंपरिक पद्धति को बदलना समकालीन दृष्टिकोण के लिए बेहतर हो सकता है।
उन्होंने 1901 में “नैवेद्य” और 1906 में “खेया” लिखा और प्रकाशित किया, जबकि वे शांतिनिकेतन के निवासी थे। दुर्भाग्य से, उनकी पत्नी और उनके दो बच्चों का एक ही समय में निधन हो गया, जिसने उन्हें तबाह कर दिया। हालाँकि, बंगाली और अन्य देशों के पाठक उस समय उनकी रचनाओं में दिलचस्पी लेने लगे थे। उन्होंने 1912 में इंग्लैंड की यात्रा की और उस समय के उल्लेखनीय लेखकों से मुलाकात की, जिनमें थॉमस स्टर्ज मूर, अर्नेस्ट राइस, रॉबर्ट ब्रिज, विलियम बटलर योर्ट्स और एज्रा पाउंड शामिल थे, जिन्होंने अपने कार्यों को प्रस्तुत किया। वे “राष्ट्रवाद” और व्यक्तित्व पर व्याख्यान देते हुए मई 1916 से अप्रैल 1917 तक जापान और अमेरिका में रहे।
दुनिया की यात्रा (The World Tour)
चूँकि टैगोर जी ‘एक दुनिया’ की अवधारणा में विश्वास करते थे, इसलिए उन्होंने अपनी विचारधाराओं को फ़ैलाने के प्रयास में विश्व दौरे की शुरुआत की. सन 1920 से 1930 के दशक में उन्होंने दुनिया भर में बड़े पैमाने पर यात्रा की. उस दौरान उन्होंने लेटिन अमेरिका, यूरोप और दक्षिण पूर्व एशिया का दौरा किया. जहाँ उन्होंने अपने कार्यों के माध्यम से कई प्रसिद्ध कवियों का ध्यान अपनी ओर खींचा. उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान जैसे देशों में लेक्चर दिए. इसके तुरंत बाद टैगोर ने मेक्सिको, सिंगापुर और रोम जैसे स्थानों का दौरा किया, जहाँ उन्होंने आइंस्टीन और मुस्सोलीनी जैसे प्रसिद्ध राष्ट्रीय नेताओं और महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों से खुद मुलाकात की. सन 1927 में, उन्होंने दक्षिणपूर्व एशियाई दौरे की शुरुआत की और कई लोगों को अपने ज्ञान और साहित्यिक कार्यों से प्रेरित किया. इन्होने इस अवसर का उपयोग कर कई विश्व के नेताओं से भारतीयों और अंग्रेजों के बीच के मुद्दों पर चर्चा करने का भी प्रयास किया.
यद्यपि उनका प्रारंभिक उद्देश्य साम्राज्यवाद को खत्म करना था, लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने यह महसूस किया कि साम्राज्यवाद उनकी विचारधारा से अधिक शक्तिशाली है. और इसलिए इसके प्रति उनमें और अधिक नफरत विकसित हुई. इसके अंत तक उन्होंने 5 महाद्वीपों में फैले 30 से भी अधिक देशों का दौरा किया था.
साहित्यिक कार्य (Literacy Works)
इन्होने अपने जीवनकाल के दौरान, कई कविताओं, उपन्यासों और लघु कथाओं की रचना की. हालाँकि उन्होंने बहुत कम उम्र में लिखना शुरू कर दिया था लेकिन साहित्यिक कार्यों की अधिक संख्या पैदा करने की उनकी इच्छा केवल उनकी पत्नी और बच्चों की मृत्यु के बाद बढ़ी. उनके द्वारा किये गए कुछ साहित्यिक कार्यों का उल्लेख यहाँ किया जा रहा है -.
लघु कथाएं:- जब वे एक किशोरी थे तब उन्होंने छोटी कहानियां लिखना शुरू किया था. उन्होंने ‘भिखारिनी’ के साथ अपना लेखन करियर शुरु किया. अपने करियर के प्रारंभिक चरण के दौरान, उनकी कहानियां उस परिवेश को रिफ्लेक्ट करती थी, जिसमे में बड़े हुए. उन्होंने अपनी कहानियों में गरीब मुद्दों और गरीबों की समस्याओं को शामिल करने के लिए भी सुनिश्चित कार्य किये. उन्होंने हिन्दू विवाहों और कई अन्य रीति – रिवाजों के नकारात्मक पक्ष के बारे में भी लिखा जोकि देश की परंपरा का हिस्सा था. उनकी कुछ प्रसिद्ध लघु कथाओं में कई अन्य कहानियां जैसे ‘काबुलीवाला’, ‘क्षुदिता पाषाण’, ‘अटोत्जू’, ‘हेमंती’ और ‘मुसल्मानिर गोल्पो’ शामिल हैं.
उपन्यास:- ऐसा कहा जाता है कि उनके कार्यों में, उनके उपन्यासों की अधिक सराहना की जाती है. उन्होंने अपने कार्यों में अन्य उपयुक्त सामाजिक बुराइयों के बीच साम्राज्यवाद के आने वाले खतरों के बारे में बात की. उन्होंने अपने एक उपन्यास ‘शेशर कोबिता’ में मुख्य नायक की कविताओं और रिदमिक पैसेज के माध्यम से अपनी कहानी सुनाई. उनके प्रसिद्ध उपन्यासों में ‘नौकाडुबी’, ‘गोरा’, ‘चतुरंगा’, ‘घारे बैर’ और ‘जोगाजोग’ आदि शामिल है.
कविताएँ: रवींद्रनाथ जी ने कबीर और राम प्रसाद सहित 15वीं और 16वीं शताब्दी के शास्त्रीय कवियों से प्रेरणा ली। नतीजतन, कई लोगों ने रवींद्रनाथ जी की कविताओं और लेखों की तुलना उन कवियों से की है। अपनी विशिष्ट लेखन शैली के साथ, उन्होंने पाठकों को शुरुआती भारतीय कवियों के साथ-साथ अपने स्वयं के कार्यों पर ध्यान देने के लिए प्रोत्साहित किया। यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि उन्होंने 1893 में लिखी गई एक कविता में भविष्य के कवि को संबोधित किया था। “बालका,” “पूर्वी,” “सोनार तोरी,” और “गीतांजलि” उनकी कुछ बेहतरीन कविताएँ हैं।
संगीतकार के रूप में (As a Song Writer)
टैगोर जी की अधिकांश कवितायेँ, कहानियां, गीत और उपन्यास बाल विवाह और दहेज जैसे उस समय के दौरान चल रही सामाजिक बुराइयों के बारे में होते थे. लेकिन उनके द्वारा लिखे गए गीत भी काफी प्रचलित थे, उनके गीतों को ‘रविन्द्र गीत’ कहा जाता था. सभी को यह ज्ञात होगा कि हमारे देश के राष्ट्रीय गान -‘जन गण मन’ की रचना इन्हीं के द्वारा की गई है. इसके अलावा उन्होंने बांग्लादेशी राष्ट्रीय गीत -‘आमर सोनार बांग्ला’ की भी रचना की थी. जो कि बंगाल विभाजन के समय बहुत प्रसिद्ध था। .
एक अभिनेता के रूप में कार्यकाल (Tagore’s Stint As An Actor)
टैगोर जी ने भारतीय पौराणिक कथाओं और उस समय के सामाजिक मुद्दों को आधार बनाते हुए कई नाटक लिखे. जब वे किशोरवस्था में थे तब उन्होंने अपने भाई के साथ मिलकर यह कार्य शुरू किया. जब वे 20 वर्ष के हुए तब उन्होंने न सिर्फ ‘वाल्मीकि प्रतिभा’ को लिखा बल्कि ‘टाईटूलर’ चरित्र का भी वर्णन किया. पौराणिक डाईकोट नाटक वाल्मीकि जी पर आधारित था, उसे उन्होंने लिखा. उन्होंने इसमें कुछ सुधार कार्य कर इसे लिखा था.
टैगोर कलाकार के रूप में (Tagore The Artist)
इन्होने 60 साल की उम्र में ड्राइंग एवं पेंटिंग करना शुरू किया. उनकी पेंटिंग्स पूरे यूरोप में आयोजित प्रदर्शनी में प्रदर्शित की गई थी. टैगोर जी की सौन्दर्यशास्त्र, कलर स्कीम और शैली में कुछ विशिष्टताएँ थी, जो इसे अन्य कलाकारों से अलग करती थीं. वे उत्तरी न्यू आयरलैंड से सम्बंधित मलंगन लोगों की शिल्पकला से भी प्रभावित थे. वह कनाडा के पश्चिमी तट से हैडा नक्काशी और मैक्स पेचस्टीन के वुडकट्स से भी काफी प्रभावित थे. नई दिल्ली में नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट में टैगोर जी की 102 कला कृतियाँ हैं.
राजनैतिक विचारधारा (Political Ideology)
टैगोर जी का राजनीतिक दृष्टिकोण थोड़ा अलग था. हालाँकि उन्होंने साम्राज्यवाद की निंदा की, उन्होंने भारत में ब्रिटिश प्रशासन की निरंतरता एवं राष्ट्रवाद का समर्थन किया. उन्होंने महात्मा गाँधी द्वारा सितंबर 1925 में प्रकाशित ‘द कल्ट ऑफ द चरखा’ में ‘स्वदेशी आन्दोलन’ की आलोचना की. उन्होंने ब्रिटिश और भारतीयों के सह – अस्तित्व में विश्वास किया. और उनका कहना था कि भारत में ब्रिटिश शासन ‘हमारी सामाजिक बीमारी के राजनीतिक लक्षण हैं’. वे कभी भी साम्राज्यवाद के समर्थन में नहीं थे. वे इसे मानवता की सबसे बड़ी चुनौती मानते थे. उन्होंने शिक्षा प्रणाली की भी आलोचना की जब भारत में अंग्रेजी भाषा के लिए मजबूर किया गया था. कभी – कभी वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन भी करते थे. स्वतंत्र भारत की उनकी दृष्टि पूरी तरह से विदेशी शासन से स्वतंत्रता पर आधारित नहीं थी, बल्कि अपने नागरिकों के विचारों और विवेक की स्वतंत्रता पर आधारित थी
मृत्यु के अंतिम पल (Rabindranath Tagore Death)
इनके जीवन के अंतिम चार वर्ष बीमारियों के चलते दर्द से गुजरे. जिसके कारण सन 1937 में वे कोमा में चले गये. वे 3 साल तक कोमा में ही रहे. इस पीड़ा की विस्तृत अवधि के बाद 7 अगस्त, 1941 को उनका देहवसान हो गया. उनकी मृत्यु जोरसंको हवेली में हुई जहाँ उन्हें लाया गया था.
अवार्ड्स एवं उपलब्धियां (Awards and Achievements)
सन 1940 में, ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी ने उन्हें शांतिनिकेतन में आयोजित एक विशेष समारोह में डॉक्टरेट ऑफ लिटरेचर से सम्मानित किया था.
अंग्रेजी बोलने वाले राष्ट्रों में उनकी सबसे अधिक लोकप्रियता उनके द्वारा की गई रचना ‘गीतांजलि: गीत की पेशकश’ से बढ़ी. इससे उन्होंने दुनिया में काफी ख्याति प्राप्त की. और उन्हें इसके लिए साहित्य में प्रतिष्ठित नॉबेल पुरस्कार जैसा सम्मान दिया गया. उस समय वे नॉन यूरोपीय और एशिया के पहले नॉबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले विजेता बने.
सन 1915 में उन्हें ब्रिटिश क्राउन द्वारा नाइटहुड भी दिया गया था, किन्तु जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद उन्होंने 30 मई 1919 को अपने नाईटहुड को छोड़ दिया. उन्होंने कहा कि उनके लिए नाईटहुड का कोई मतलब नहीं था, जब अंग्रेजों ने अपने साथी भारतीयों को मनुष्यों के रूप में मानना भी जरुरी नहीं समझा.
विरासत (Legacy)
टैगोर जी ने दुनिया भर में लेखकों की पूरी पीढ़ी को प्रभावित किया. उनके द्वारा किये गए कार्यों का प्रभाव न सिर्फ बंगाल एवं भारत में था बल्कि यह दूर – दूर तक फैला हुआ था. इसलिए उनके कार्यों का अनुवाद अंग्रेजी, डच, जर्मन, स्पेनिश आदि भाषाओँ में भी किया गया था. .
रोचक जानकारी (Interesting Facts)
केवल 8 साल की उम्र में उन्होंने अपने जीवन की कविता का लेखन शुरू कर दिया था.
ये औपचारिक शिक्षा एवं स्ट्रक्चर्ड शिक्षा प्रणाली को बहुत ही तुच्छ मानते थे, इसलिए उन्हें स्कूल एवं कॉलेज की शिक्षा प्राप्त करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी.
उनके द्वारा की गई भारतीय साहित्य और कला में क्रांति के चलते उन्होंने बंगाल में पुनर्जागरण आंदोलन शुरू किया.
उन्होंने प्रसिद्ध जर्मन वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के साथ समानता बनाये रखी और ये दो नॉबेल पुरस्कार विजेताओं ने एक – दुसरे की प्रशंसा की.
फिल्म निर्माता सत्यजीत रे टैगोर के कार्यों से गहराई से प्रभावित थे और रे की ‘पाथर पांचाली’ में प्रतिष्ठित ट्रेन के दृश्य, टैगोर जी की ‘चोखेर बाली’ में दर्शाई गई एक घटना से प्रेरित थे.
वे एक महान संगीतकार भी थे, उन्होंने लगभग 2,000 से भी अधिक गीतों की रचना की.
ये तो सभी जानते हैं कि भारत और बांग्लादेश जैसे देशों के राष्ट्रीय गान को लिखने वाले गीतकार टैगोर जी ही थे, लेकिन आप सभी ये नहीं जानते कि श्रीलंका का राष्ट्रीय गान सन 1938 में टैगोर द्वारा लिखे गये बंगाली गीत पर आधारित है.
सुविचार (Quotes)
तथ्य कई होते हैं लेकिन सच्चाई केवल एक होती है.
प्यार एक वास्तविकता है ते कोई भावना नहीं है. यह सच्चाई है जो सृष्टि के दिल में होती है.
फूलों की पंखुड़ियों को तोड़ने वाले उसकी सुन्दरता को नहीं देख सकते हैं.
जिस तरह से पत्ते की नोक पर ओस की बूदें नृत्य करती है उसी प्रकार अपने जीवन को समय के किनारों पर हल्के से नृत्य करने दें.
अपने बच्चे को अपनी शिक्षा तक ही सीमित न रखें, क्योंकि वह किसी दुसरे समय पर पैदा हुआ है.
इस तरह से ये एवं इनके गीत, संगीत एवं अन्य सभी कार्य अभी भी लोगों के बीच जीवित हैं. Which is still observable आज। इसके अतिरिक्त, बंगाल संग्रहालय में उनके कुछ कार्यों को प्रदर्शित किया गया है। नतीजतन, बंगाल के साथ-साथ, उन्हें अभी भी भारतीय आबादी द्वारा अत्यधिक याद किया जाता है।